Quotes by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR in Bitesapp read free

DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR

DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR Matrubharti Verified

@dhirendra342gmailcom
(177)

❄️ “बर्फ़ के पीछे कोई था…”
कुछ कहानियाँ हमसे नहीं कहतीं कि उन्हें पढ़ो — वो बस धीरे से हमें छूती हैं, और हमेशा के लिए हमारे भीतर रह जाती हैं।

यह किताब एक ऐसी ही यात्रा है — एक अधूरी तलाश की, एक बर्फ़ में जमी हुई ख़ामोशी की, और उस ‘किसी’ की जो दिखता तो नहीं… पर हर पन्ने में महसूस होता है।

📖 “मैंने कई बार उस बर्फ़ को छुआ था… हर बार ठंड ने मुझे काटा, पर आज पहली बार उस बर्फ़ के पीछे की गर्मी महसूस हुई। वहाँ कोई था… जो अब भी मेरा इंतज़ार कर रहा था — बिना कहे, बिना बताए, बस चुपचाप…”

यह किताब सिर्फ कहानी नहीं है — यह एक एहसास है उन सभी रिश्तों का जो अधूरे रह जाते हैं, उन जज़्बातों का जो शब्दों में नहीं ढलते, और उन सवालों का जिनका जवाब हम कभी नहीं पूछते।

“बर्फ़ के पीछे कोई था” एक आइना है — और जब आप इसमें झाँकते हैं, तो आप सिर्फ किरदारों को नहीं, खुद को देखते हैं।

अगर आपने कभी किसी को खोया है, किसी को चाहा है, या किसी को बिना कहे छोड़ दिया है — तो यह किताब आपको भीतर तक छू जाएगी।

📚 अब उपलब्ध है — Amazon | Flipkart | Notion Press
📦 Grab your copy now and find out — क्या वाकई बर्फ़ के पीछे कोई था?

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“गर दर्द अक्सर दिल में बयान हो,
तो ही ज़िंदगी में ज़ख्म उभर पाते हैं…” — (धीर)

कभी-कभी जज़्बात चुपचाप अंदर ही घुटते रहते हैं,
और जब वो लफ़्ज़ बनकर निकलते हैं,
तो सिर्फ़ ज़ख्म नहीं दिखते — पूरी कहानी सामने आ जाती है।

हर मुस्कराहट के पीछे कोई सिसकती हुई ख़ामोशी होती है…
बस ज़रूरत है उसे महसूस करने की।

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📖 जब पहाड़ रो पड़े – एक किताब, एक तड़प, एक सच्चाई 🌄

यह सिर्फ़ एक किताब नहीं है — यह उन पहाड़ों की पुकार है, जिन्हें हम सबने कभी न कभी पीछे छोड़ दिया।
यह उन बूढ़ी आंखों का इंतज़ार है, जो आज भी दरवाज़े पर खड़ी हैं — शायद कोई लौट आए…

“जब पहाड़ रो पड़े” लेखक धीरेन्द्र सिंह बिष्ट की कलम से निकली एक सच्ची और मार्मिक दस्तावेज़ है, जो उत्तराखंड के गांवों से हो रहे पलायन की उस चुपचाप बहती त्रासदी को शब्द देती है, जिसे न सरकारें समझ पाईं, न ही अख़बारों की सुर्खियाँ।

हर पन्ना एक खाली गांव की कहानी कहता है, हर पैराग्राफ़ में किसी बेटे की मजबूरी, किसी मां की चुप्पी, और किसी पहाड़ी की पीड़ा दर्ज है।

आप अगर कभी पहाड़ में रहे हैं, वहाँ की मिट्टी की खुशबू को जाना है, या बस एक बार वहाँ की शांति को महसूस किया है — तो ये किताब आपके दिल को गहराई से छू जाएगी।

💔 “ये सिर्फ़ पलायन नहीं है, ये आत्मा की जड़ों से कटने की टीस है…”

📚 Amazon बेस्टसेलर
📆 प्रकाशित: 11 जुलाई 2025
🖋️ लेखक: Dhirendra Singh Bisht

इस किताब को पढ़िए, समझिए — और महसूस करिए कि जब पहाड़ रोते हैं, तो वो आवाज़ कितनी दूर तक गूंजती है।

👉 Link in bio to get your copy now.
#जबपहाड़रोपड़े #BooksThatMatter #DhirendraSinghBisht #UttarakhandMigration #HeartfeltReads #MustRead #IndianAuthors #BestsellerBook

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📖 जब पहाड़ रो पड़े – एक किताब, एक तड़प, एक सच्चाई 🌄

यह सिर्फ़ एक किताब नहीं है — यह उन पहाड़ों की पुकार है, जिन्हें हम सबने कभी न कभी पीछे छोड़ दिया।
यह उन बूढ़ी आंखों का इंतज़ार है, जो आज भी दरवाज़े पर खड़ी हैं — शायद कोई लौट आए…

“जब पहाड़ रो पड़े” लेखक धीरेन्द्र सिंह बिष्ट की कलम से निकली एक सच्ची और मार्मिक दस्तावेज़ है, जो उत्तराखंड के गांवों से हो रहे पलायन की उस चुपचाप बहती त्रासदी को शब्द देती है, जिसे न सरकारें समझ पाईं, न ही अख़बारों की सुर्खियाँ।

हर पन्ना एक खाली गांव की कहानी कहता है, हर पैराग्राफ़ में किसी बेटे की मजबूरी, किसी मां की चुप्पी, और किसी पहाड़ी की पीड़ा दर्ज है।

आप अगर कभी पहाड़ में रहे हैं, वहाँ की मिट्टी की खुशबू को जाना है, या बस एक बार वहाँ की शांति को महसूस किया है — तो ये किताब आपके दिल को गहराई से छू जाएगी।

💔 “ये सिर्फ़ पलायन नहीं है, ये आत्मा की जड़ों से कटने की टीस है…”

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📆 प्रकाशित: 11 जुलाई 2025
🖋️ लेखक: Dhirendra Singh Bisht

इस किताब को पढ़िए, समझिए — और महसूस करिए कि जब पहाड़ रोते हैं, तो वो आवाज़ कितनी दूर तक गूंजती है।

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यह सिर्फ़ एक किताब नहीं, एक अनुभव है —
“मन की हार, ज़िंदगी की जीत” ✨📘

जब ज़िंदगी की ठोकरें हौसला छीन लें, जब हर ओर असफलता और डर मंडराए — तब यह किताब उम्मीद की लौ की तरह आपके सामने आती है।

यह हर उस इंसान के लिए है जिसने कभी हार मानी, फिर भी उठ खड़ा होने की ठानी।

📖 इस किताब में मिलेगा आपको:
✔️ डर और असफलता से निकलने का रास्ता
✔️ आत्मविश्वास और आत्मसंवाद की शक्ति
✔️ मन की उलझनों को समझने की सरल भाषा
✔️ सच्ची कहानियाँ जो प्रेरणा बन जाएँ
✔️ हर दिन को नई शुरुआत मानने की सीख
✔️ कोशिश, संयम और सफर का महत्व

यह किताब मन की लड़ाई को जीतने की कहानी है — एक ऐसा सफर जो खुद से शुरू होता है और खुद तक ही पहुँचता है, लेकिन आपको पूरी तरह बदल देता है।

✍🏻 लेखक: @author_dhirendrasbisht
💬 हर पृष्ठ पर सिर्फ़ शब्द नहीं — अनुभव हैं, हौसला है, और वो अहसास है जो आपको फिर से जीने का कारण दे सकता है।

📚 अब उपलब्ध है:
✅ Amazon
✅ Flipkart
✅ Notion Press (Paperback + eBook)

अब वक्त है, खुद से मिलने का।
अब वक्त है, मन से जीतने का।

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📖 “काठगोदाम की गर्मियाँ” — एक ऐसी कहानी जो धीमे-धीमे असर करती है… जैसे पहाड़ों की हवा।

यह कोई बेस्टसेलर नहीं, लेकिन हर उस दिल की पसंद बन सकती है जिसने कभी किसी “अनकहे रिश्ते” को जिया हो।

💬 “कुछ रिश्ते नाम से नहीं, मौन और नज़रों से बनते हैं…”

✍🏻 लेखक – धीरेंद्र सिंह बिष्ट
📚 उपलब्ध है —
🔹 Amazon
🔹 Flipkart
🔹 Notion Press
🔹 Kindle eBook

📦 अभी ऑर्डर करें और एक सुकूनभरी प्रेम कहानी का हिस्सा बनें…

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🧠 सोच और प्रतिक्रिया – आपकी असली पहचान
हमारी ज़िंदगी में दो चीज़ें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं — हमारी सोच और हमारी प्रतिक्रिया। यही दो पहलू मिलकर हमारी पहचान बनाते हैं।

“मनोविकार हमारी मनोस्थिति तय करते हैं — वे इस बात का आईना हैं कि हमारी सोच कितनी ग्रसित है और हम स्वयं की नज़रों में क्या स्थान रखते हैं।”
– धीरेंद्र सिंह बिष्ट
लेखक: “मन की हार, ज़िंदगी की जीत”

हर व्यक्ति के भीतर कुछ ना कुछ चल रहा होता है — कभी तनाव, कभी भ्रम, कभी अधूरी इच्छाएं। ये सब मिलकर मन के भीतर एक हलचल पैदा करते हैं, जिसे हम अक्सर बाहर प्रकट कर देते हैं। लेकिन हम भूल जाते हैं कि हमारी प्रतिक्रिया ही हमारा असली चेहरा बन जाती है।

“जब कोई व्यक्ति बिना सोचे प्रतिक्रिया देता है, तो वह न केवल अपनी बात की गहराई खो देता है, बल्कि अपनी पहचान की चमक भी धूमिल कर देता है।”
– धीरेंद्र सिंह बिष्ट

कभी-कभी ग़ुस्से में कही गई बात, या तुरंत दी गई प्रतिक्रिया, हमारे वर्षों की मेहनत और छवि को क्षणों में मिटा सकती है। सोच-समझकर बोलना केवल परिपक्वता की निशानी नहीं, बल्कि आत्म-अनुशासन और आत्मसम्मान का प्रतीक है।

📚 “मन की हार, ज़िंदगी की जीत” सिर्फ किताब नहीं है, यह एक यात्रा है — अपने भीतर झांकने की, अपने सोच के स्तर को परखने की और भावनाओं को बेहतर ढंग से समझने की।

इस पुस्तक का हर पृष्ठ एक नया सवाल खड़ा करता है –
❓ हम खुद को कितनी गहराई से समझते हैं?
❓ क्या हम अपनी प्रतिक्रियाओं के ज़रिए खुद को उजागर कर रहे हैं या खो रहे हैं?

🎯 अगर आप आत्मविकास, मानसिक शांति और स्पष्ट सोच की तलाश में हैं, तो यह किताब आपके जीवन की दिशा बदल सकती है।

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५० किताबें, ५० कहानियाँ, और एक दिल से निकली आवाज़।
काठगोदाम की गर्मियाँ अब ५० पाठकों की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी है।
ये सफ़र सिर्फ़ मेरा नहीं रहा — अब ये हम सबका है।
आपके प्यार और भरोसे के लिए दिल से धन्यवाद।
कहानी अभी बाकी है… 🌿📖”

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कभी-कभी शब्द बोझ बन जाते हैं…
वो बोझ, जो किसी और के लिए बस कुछ पंक्तियाँ हैं, लेकिन किसी टूटे हुए मन के लिए पूरी दुनिया होती हैं।

“शब्दों के बोझ” मेरी आत्मा से निकली एक ऐसी कहानी है, जो शायद आपके भीतर के राघव को छू ले।
राघव — एक साधारण इंसान, पर असाधारण तकलीफ़ें झेलता हुआ।
जिसने बार-बार लोगों को समझाने की कोशिश की,
पर हर बार, या तो अनसुना किया गया, या मज़ाक बना दिया गया।

“जब कोई चीज़ बार-बार कहनी पड़े,
तो शायद वो चीज़ कहने लायक नहीं रही।
या फिर कहने वाला थक चुका है।”

कितनी बार हम यही करते हैं ना?
किसी अपने से कुछ कहना चाहते हैं,
पर सामने वाला मोबाइल में उलझा होता है —
“बोल ना, मैं सुन रहा हूँ।”
पर असल में, वो सुन नहीं रहा, समझ नहीं रहा।

राघव की सबसे बड़ी गलती यही थी —
उसने लोगों से वैसी ही उम्मीद की, जैसी वो खुद था।
सच्चा, ईमानदार, भावुक।
लेकिन हर बार उसे चुप्पी मिली, या ताने।

फिर एक दिन, उसने अपनी डायरी में लिखा —
“मुझे कोई नहीं समझा, पर मैं खुद को समझता हूँ।”
यही आत्मबोध की शुरुआत थी।

अब वो कम बोलता है, पर गहराई से जीता है।
अब उसे दूसरों की मंज़ूरी नहीं चाहिए —
बस आइने में खुद से नज़र मिलाना आता है।

“जब बोल-बोलकर थक जाओ,
तब चुप्पी सबसे ऊँची चीख बन जाती है।”

“शब्दों के बोझ” कोई कहानी नहीं —
ये उन अनकहे एहसासों की दास्तान है,
जो हर उस दिल ने जिए हैं,
जिसे कभी किसी ने नहीं सुना।

अगर आपने कभी खुद से बात की है,
या अपनी खामोशी को दोस्त बनाया है,
तो ये किताब आपके लिए है।

✍🏻 लेखक: धीरेन्द्र सिंह बिष्ट
📘 “शब्दों के बोझ” – अब उपलब्ध MatruBharti पर
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“क्या कभी पहाड़ की चुप्पी सुनी है?”
जहाँ कभी बच्चों की किलकारियाँ, माँ की थाली की खनक और खेतों में पिता की हलचल गूंजती थी — आज वहाँ सिर्फ़ नाटा है।

“जब पहाड़ रो पड़े” कोई साधारण किताब नहीं, एक जीती-जागती दस्तावेज़ है उन गाँवों की जो अब मानचित्र पर तो हैं, पर ज़िंदगी से कट चुके हैं। यह उन माँओं की पुकार है जो अब भी दरवाज़े खुले रखती हैं, उन पिता की चुप्पी है जो हर सुबह खेतों में उम्मीद बोते हैं, उन स्कूलों की दीवारें हैं जो अब भी बच्चों की आवाज़ सुनने को तरसती हैं।

ये किताब आँकड़ों की नहीं, आंसुओं की कहानी है। एक ऐसा सच जिसे हमने देखा है, महसूस किया है — लेकिन शायद स्वीकार नहीं किया।

अगर आपने भी कभी अपना गाँव छोड़ा है, या अब भी मन में उस मिट्टी की ख़ुशबू बसती है — तो ये किताब आपकी अपनी कहानी है।

Amazon की Best Seller सूची में शामिल “जब पहाड़ रो पड़े” आज एक भावनात्मक आंदोलन बन चुकी है।
इस किताब को पढ़िए, महसूस कीजिए… और सोचिए — क्या हम सिर्फ़ शहरों के नागरिक हैं, या उन गाँवों के भी ज़िम्मेदार हैं जो हमें जड़ें देते हैं?

📖 लेखक: धीरेंद्र सिंह बिष्ट
🎖 Amazon Bestseller | Anthropology Rank #72
📚 उपलब्ध है Now on Amazon

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