कहानी की शुरुआत:
आरव को हर दिन डाक लेकर गांव भर में घूमना होता था। लेकिन एक दिन जब उसने कविता को पहली बार देखा, तो वक्त जैसे थम सा गया। वो नीली सलवार में खड़ी थी, बालों में दो चुटिया, और आंखों में सपनों का समंदर।
धीरे-धीरे आरव को पता चला कि कविता हर हफ्ते अपनी माँ को एक चिट्ठी भेजती है। और हर बार जब वो उसकी चिट्ठी लेकर आता, कविता के चेहरे पर एक मुस्कान बिखर जाती।
प्रेम की शुरुआत:
आरव ने कभी सीधे कुछ नहीं कहा, लेकिन चिट्ठियों पर लिखी गई कविताएं उसका दिल बयाँ करती थीं। एक दिन कविता को एक चिट्ठी मिली, बिना भेजने वाले का नाम –
> "तुम्हारी मुस्कान सबसे सुंदर शब्द है, जो मैंने कभी नहीं पढ़ा..."
कविता समझ गई थी... ये आरव के दिल की चिट्ठी है। मगर वो भी सीधे कुछ नहीं बोली। उसने अगली बार एक जवाबी चिट्ठी उसी अंदाज़ में डाक में डाल दी:
> "अगर मेरी मुस्कान कविता है, तो तुम मेरे पन्ने बन जाओ..."
संघर्ष:
गांव में जब ये बात फैलने लगी, लोगों ने ताने देने शुरू कर दिए। कविता के मामा को ये रिश्ता मंज़ूर नहीं था।
"एक डाकिया और मेरी भांजी?" – उन्होंने नाराज़गी से कहा।
अंततः:
आरव ने अपनी इज़्ज़त और मोहब्बत के लिए गांव छोड़ शहर जाने का फैसला किया। लेकिन जाते-जाते कविता को एक आखिरी चिट्ठी लिखी:
> "शायद हम अब न मिलें, पर तुम्हारी हर चिट्ठी मेरे दिल की डाक है – कभी देर नहीं होगी, मैं जरूर जवाब दूंगा।"
कुछ सालों बाद, कविता एक टीचर बन गई। एक दिन स्कूल में एक स्पेशल पोस्टमास्टर को सम्मानित करने का आयोजन था — वो आरव था।
जब मंच से उसे कविता की आवाज़ सुनाई दी:
"आज मैं उस शख्स को सम्मानित कर रही हूं, जिसने मुझे प्रेम की सबसे खूबसूरत भाषा सिखाई — चिट्ठियों की भाषा।"
सभी तालियाँ बजा रहे थे। आरव और कविता की आंखों में आंसू थे — लेकिन वो आंसू खुशी के थे।
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सीख:
प्यार अगर सच्चा हो, तो शब्दों में नहीं, खामोश चिट्ठियों में भी सांस ले सकता है। दिल अगर वफ़ादार हो, तो दूरी भी रास्ता बन जाती है।