"तेरे बिना कुछ भी नहीं"
तेरी आंखों में जो ठहराव है,
वो शहर की भीड़ में मेरा ठिकाना है।
तू जब मुस्कुराती है यूं बेपरवाह,
दिल सोचता है — और क्या चाहिए अब खुदा से?
तेरे बिना जो जिया वो वक़्त नहीं था,
सांसें थीं... पर ज़िंदगी कहीं नहीं थी।
तू साथ हो तो चाय भी कविता लगती है,
तेरे बिना कॉफ़ी भी फीकी लगती है।
तेरे आने से खामोशी में हरकत आई है,
दिल की दीवार पर तेरा नाम लिखा दिखाई देता है।
तू समझता नहीं पर हर बात समझा जाता है,
तेरा चुप रहना भी मेरा हाल बयाँ करता है।
तेरे ज़िक्र से भी फूल खिल जाते हैं,
और लोग कहते हैं, "तू कुछ ज़्यादा मुस्कुराता है आजकल।"
तेरी तस्वीर को देखा हर दिन नए नज़रों से,
जैसे हर बार तू थोड़ी और मेरी हो जाती है।
तेरे बिना जो किताब पढ़ी वो खाली थी,
तू थी तो हर लफ़्ज़ में रौशनी थी।
तेरा नाम जुबां पर आते ही कुछ थम जाता है,
जैसे दिल भी कहता है — बस अब और मत बोल।
तेरे होने से मुकम्मल हूं मैं,
वरना खुद को भी पूरा नहीं समझता था।
-सुहेल अंसारी । सनम