क्या लिखूं कवि में तुझे , जो तू हम सब को लिखता है
दर्द भरे गाने और मुस्कुराने के बहाने लिखता है ||
पेड़ और पहाड़ों से बातें करता है और सबको बताता है
तू खुद सोचता है, तूने आखिरी बार कब लिखी थी मुक्कमल
मोहब्बत की दास्तां, मुस्कुराता है और कहता है कहा से लिखूं
मोहब्बत की दास्तां कभी मुक्कमल हुई ही नहीं