बस इतना सा ही तो ख़्वाब था
थोड़ी न कोई आसमान था
जो मैने मांग लिया हो
जो लोगों के हक का हो
मैने तो मांगी अपनी खुशी अपना सुकून अपनी जिंदगी
और जिन्दगी भी कैसी
एक सामान्य सी पेड़ की छांव सी
मैं भी सब की तरह बन जाऊ
मैं भी जिंदगी खुल के जी पाऊं
चलो ये न सही तो हम इसमें भी वक्त गुजर ही रहे थे
एक सहारे की आस थी
जो ना मिला उसकी प्यास थी
कम से कम वो तो मिल जाता
क्या एक भी नहीं बन पाया मेरे लिए
क्या एक भी नहीं लिखा मेरी तकदीर में
क्या
क्या बड़ा कुछ मांग लिया था
जो था उसे ही मांग लिया था
थोड़ी सी तो ख्याहिश थी जिंदगी की
के कोई एक तो आएगा मेरा हाथ थाम लेगा
मुझे बचा लेगा
मुझे नहीं पीसने देगा इन झंझटो में
मेरे बिन बोले शब्द वो बोल देगा
मैं छुप जाऊंगी उसमें कही वो मुझे संभाल लेगा
फिर क्या
फिर बस पंख लग जाते मुझे
में उड़ चलती उसके साथ साथ
और छूटे हम सातों आकाश
पर ये भी ना हुआ
हर सपना टूट कर चूर चूर हो गया
और इसे किया भी मैने
बताओ क्या कोई ऐसा होगा
अपनी मोहब्बत को अपने दूर जाने देगा
पर मैने किया
चुनाव ही ऐसा दुखदाई था
एक तरफ जिम्मेदारी एक तरफ मेरा प्यार था
में खुद को सम्भल लेती पर जिम्मेदारी कौन लेता
उसे छिन लेती तो घर का चिराग कौन बनता