साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं....
साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं।
संचालक गण बड़े त्रस्त हैं।।
छपवाने की होड़ मची कुछ।
प्रकाशक अब सभी मस्त हैं।।
खुद का लिखा पीठ खुद ठोंका।
छंद-विज्ञानी सभी पस्त हैं।।
श्रोताओं की कहाँ कमी अब।
उदरपूर्ति कर हुए लस्त हैं।।
लंबी-चौड़ी कविता पढ़ लें।
चाँद-सितारे नहीं अस्त हैं।
परिहासों का दौर चल रहा।
पिछली आमद सभी ध्वस्त हैं।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*
4/4/25