शायरी
न कोई पास नहीं कोई दूर नहीं है
अब इस दिल का यही फासला है
खुद को खुद तक सीमित रखना है;
बस दिल ना किसी से लगाना है
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ना कुछ पाने की खुशी है, ना कुछ
खोने का ग़म है,
ये दौलत और शोहरत सिर्फ़ कुछ जख्मो
का मरहम है,
अजब सी कश्मकश है रोज जीने, रोज
मरने में,
मुकम्मल ज़िंदगी तो है, मगर पूरी से कुछ
कम है…!!
💕
- Umakant