ग़ज़ल: बहुत देर कर दी
लेखक: जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -
बहुत देर कर दी
सुरूर हसरतों ने हर घाव को गहरा किया,
ओ सवाल ने मुझे तन्हाई ने करारा दिया।
ग़म के साए में जब भी तुझे पुकारा किया,
अजामत यादों के दरीचों में गुज़ारा किया।
खुशामद-ए-मोहब्बत का कोई इल्म नहीं,
जैसे आईना हो और अपना नज़ारा लिया।
बहुत देरे शामकर दी तुझे भुलाने में हमदम,
मलाल हर ख्वाब ने बदनसीब इशारा किया।
दिल-ए-नाकाम का सुकून भी अधूरा सा है,
जैसे चिराग़ ने अंधेरों को यु बेसहारा किया।
इश्क़ और गवारा शिकस्त फ़िर भी नहीं,
वादों ने बस खामोशी का मुजारा किया।
हर मोड़ से तेरी ख़ुशबू की गवाही आई,
हर मंज़िल ने मेरे दिल का सहारा किया।
बहुत देर कर दी तुझे यादे निशा करने में,
आहट ने फिर नया इश्तिहार सुधारा किया।
अब चाँदनी रातें भी तुझसे सवाल करती हैं,
तेरी परछाइयों ने हर ज़ख़्म को हरा किया।
बहुत देर कर दी फख्रे सुकून को पाने में,
हजारात मोहब्बत ने हर दर्द खुदारा किया।
तेरे बिना ये गली, ये सफर बंजारा किया,
रस्म सांस ने बस मुझी को छलावा दिया।
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प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।
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जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित