Hindi Quote in Book-Review by Hemant Parmar

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पंक्तियाँ जो दिल को छू गयीं

पीठ में बहुत दर्द था
डाॅक्टर ने कहा कि
अब और मत झुकना
अब और अधिक झुकने की
गुंजाईश नहीं रही...

झुकते झुकते
तुम्हारी रीढ़ की हड्डी में
गैप आ गया है...

सुनते ही हँसी और रोना
एक साथ आ गया...

ज़िंदगी में पहली बार
किसी के मुँह से सुन रही थी
ये शब्द ^ मत झुकना...

बचपन से तो
घर के बड़े बूढ़ों
माता पिता
और समाज से
यही सुनती आई हूँ
कि झुकी रहना...

नारी के झुके रहने से ही
बनी रहती है गृहस्थी...

नारी के झुके रहने से ही
बने रहते हैं संबंध...

नारी के झुके रहने से ही
बना रहता है
प्रेम...प्यार...घर...परिवार

झुकती गयी
झुकते रही
झुकी रही,
भूल ही गयी कि
उसकी कहीं कोई
रीढ़ भी है...

और ये आज कोई
कह रहा है कि
झुकना मत...

परेशान सी सोच रही हूँ
कि क्या सच में
लगातार झुकने से
रीढ़ की हड्डी
अपनी जगह से
खिसक जाती है...??

और उनमें कहीं गैप
कोई ख़ालीपन आ जाता है...??

सोच रही हूँ...!!

बचपन से आज तक
क्या क्या खिसक गया
उसके जीवन से
कहाँ कहाँ ख़ालीपन आ गया
उसके अस्तित्व में
कहाँ कहाँ गैप आ गया
उसके अंतर्मन में...

बिना उसके जाने समझे...!!

उसका
अल्हड़पन
उसके सपने
कहाँ खिसक गये...??

उसका मन
उसकी चाहत
कितने ख़ाली हो गये...

उसकी इच्छा अनिच्छा में
कितना गैप आ चुका है...

क्या वास्तव में नारी की
रीढ़ की हड्डी भी
होती है
समझ में नहीं आ रहा...

Hindi Book-Review by Hemant Parmar : 111964484
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