मैं और मेरे अह्सास
याद आते हैं
पुराने नशीले ज़माने याद आते हैं l
इत्तफाक से फ़साने याद आते हैं ll
फुलझड़ी, टेटे, जलेबी, अनार व् l
बचपन वाले पटाख़े याद आते हैं ll
एक नज़र हुस्न का दीदार करने को l
छत पे जाने के बहाने याद आते हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह