ना जाने क्यों आजकल हर कोई मुझ पर शक करने लगा है
बोलता हूं सच, मगर वो झूठ समझने लगा है दिल है साफ, मन है पवित्र गंगा जैसा मगर हर कोई मन को मैला समझने लगा है ना जाने क्यों आजकल हर कोई मुझ पर शक करने लगा है
कैसे समझाऊं समझाऊं औरों को अब अपने भी मुझ पर शक करने लगा है बोलता सच हूं, मगर बात चुफ जाती है तो मैं क्या करूं गैर तो गैर अब तो अपना भी पराया समझने लगा है ना जाने क्यों आजकल हर कोई मुझ पर शक करने लगा है
झूठ बोलूं तो, ईमान गवाऊं मगर मन उनका खिल जाता है सच बोलूं तो चेहरा मुरझा जाता है एक नया दुश्मन तैयार हो जाता है ना जाने क्यों हर कोई मुझ पर शक करने लगा है
जीने की औकात नहीं बात करते हैं अपनों पर मरने की अगर कहूं फेंको मत, जुबान पर लगाम दो बात सुनते ही हर कोई नाराज हो जाता है अब तो मंसूबे पर ही लोग प्रश्न चिह्न लगाने लगा है ना जाने क्यों हर कोई मुझ पर शक करने लगा है