।। वंदे मातरम्।।
धरा मेरी है ज्ञान की, विज्ञान की धरा,
संस्कृति के मान की सम्मान की धरा,
मैं सिर्फ एक देश नहीं एक सोच हूं,
सभ्यतायों में श्रेष्ठ सभ्यता की खोज हूं,
मैं जोड़ने की सोच के ही संग चलूंगा,
अखंड था, अखंड हूं ,अखंड रहूंगा ।।
हर कदम अलग जुबां, अलग ही रीत है,
और तरह तरह के यहां पे गीत है,
मैं प्रीत का ही गीत वो अभंग रहूंगा,
अखंड था, अखंड हूं, अखंड रहूंगा ।।
माना के कई धर्म कई पंथ हैं यहां,
और अलग अलग सभी के ग्रंथ हैं यहां,
फिर भी एकता का स्त्रोत मैं प्रचंड रहूंगा
अखंड था, अखंड हूं, अखंड रहूंगा ।।
कई है लोग, साथ में कई विचार है,
अलग-अलग गुलों की जैसे एक बहार है,
मैं द्वंद्व में भी योग का सुगंध रहूंगा,
अखंड था, अखंड हूं, अखंड रहूंगा ।।
कई वीर जन्में धरती पे मेरी,
कई वीर अमर कहलाये,
उन वीरों की वीरता का घमंड रहूंगा,
अखंड था, अखंड हूं, अखंड रहूंगा ।।