मैं और मेरे अह्सास
जो भी हो जैसे भी हो बस मुस्कुराते रहिए l
ख़ुशी से प्यार भरे नगमें गुनगुनाते रहिए ll
हर कोई यहाँ अपने ही ग़म में गुम है l
होठों पर नशीली मुस्कान सजाते रहिए ll
न जाने कल फ़िर मौक़ा मिले या ना मिले l
हर पल त्यौहारों की तरह मनाते रहिए ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह