#काव्योत्सव -2
शीर्षक ;चलते जाना है
क्या खबर किस और जाना है, बस अपनी ही पहचान को खोते जाना है।
किस मोड़ पर मुडना हे ये नहीं जानते फिर भी आज बस मुझे चलते जाना है।
क्यू फिक्र हे सब को कल की,हमे बस तो हमारे आज को बेहतर बनाते जाना है।
क्यू घिरे रहते हे लोग परेशानियों में,हमे तो बस अपनी ही फ़क़ीरी में जीते चले जाना है।
कोई अपना नहीं यहाँ उम्मीद क्यों बढ़ाए उनकी तरफ उनकी हैसियत से ज़्यादा,
यहाँ बस अपने हुनर,क़ाबिलियत और दुआओं की खुश्बू बिखेरते जाना है।
क्या नाम दे हम अपने निजानंद को,हर हाल में खुश हो के दुसरो में ख़ुशी बांटते चले जाना है।