#काव्योत्सव -२
आहिस्ता चल ऐ ज़िंदगी,अभी कई कर्ज चुकाने बाकी है।
कुछ दर्द मिटाने बाकी है,कुछ फर्ज निभाने बाकी है।-आहिस्ता चल ऐ ज़िंदगी
रफ्तार मे तेरे चलने से कुछ रुठ गए,कुछ छुट गए,
रुठो को मनाना बाकी है,रोते हुओ को हँसाना बाकी है।-आहिस्ता चल ए ज़िंदगी
कुछ ह़सरते अभी अधुरी है,कुछ काम भी अभी ज़रुरी है
ख्वाहिशे जो घुट गई इस दिल मे,उनको दफनाना बाकी है।-आहिस्ता चल ऐ ज़िंदगी
कुछ रिश्ते बन कर टुट गए,कुछ जुडते-२ छुट गए,
उन टुटे-छुटे रिश्तो के ज़ख्मो को मिटाना बाकी है।-आहिस्ता चल ऐ ज़िंदगी
तु आगे चल मैं आती हुं,क्या छोड तुजे ज़ी पाऊंगी,
इन सांसो पर हक है जिनका,उनको समजाना बाकी है।
आहिस्ता चल ऐ ज़िंदगी,अभी कई कर्ज चुकाने बाकी है।