वो चली गयी तब..!
वो चली गयी तब खिड़की में सूरज डूब रहा था,
और मुझसे नज़रे चुराकर बादलों के पीछे छुप रहा था |
वो चली गयी तब दबे पाँव बादल छा गये थे,
और आसमान धीरे से आँसू बहा रहा था |
वो चली गयी तब हवाओं ने अपना रुख बदला,
और टहनी से सूखे पत्ते को गोद में लिए चुपचाप निकल गया |
वो चली गयी तब घर जैसे बेजान सा हो गया,
और हँस-खिलखिलाता घर मेरा वीरान सा हो गया |
वो चली गयी तब आँगन सुना लगने लगा,
और तुलसी के पौंधे को मायुसी से गर्दन झुकाये पड़ा देखा |
वो चली गयी तब अचानक मैं बड़ा हो गया,
और बचपन ने आख़री सांस लेकर दम तोड़ दिया |
वो चली गयी तब महसूस हुआ,
बिना शर्त के अब प्यार करनेवाला कोई न रहा |
वो माँ थी इसलिए आँखों में आँसुओं की बाढ़ मैं रोक न सका,
और उसके अनगिनत प्यार को शायद समझ न सका |
वो चली गयी तब उसकी कमी खलने लगी,
और मैं तड़पता हुआ उसकी यादोंको समेटने लगा |
अगर वो होती तो अपने पल्लू में मेरे आँसुओ को थाम लेती,
अगर वो होती तो अपने बूढ़े हाथ मेरे सर पर फेरती |
अगर वो होती तो उसकी गोद में जी भरके रो लेता |
अगर वो होती तो मुझे समझा बुझाकर सुला देती |
मगर बिना कुछ कहें मुझे छोड़कर वो चली गयी,
अपने साथ मेरे बचपने को भी ले गयी |
हमेशा मैं रूठता और वो मना लेती,
मग़र आज न जाने क्यों माँ मुझसे रूठ गयी |
वो माँ थी इसलिए मैं भी बच्चे की तरह रोये जा रहा हुँ |
वो माँ थी इसलिए..........
By Deep