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बऱ्याचदा आपण ज्यांच्यावर प्रेम करतो नकळत त्यांची मने दुखावत जातो. त्यावेळी निव्वळ आपल्या प्रेमाखातर ते सारे सहन करतातही, पण मारण्याचे घाव एकवेळ भरून निघतात शब्दांनी केलेले घाव कित्येक जन्म आपल्या ज्ञानमय कोशात साठून रहातात. आणि पुन्हा जन्म घेण्याच्या फेऱ्यात आपण अनावधानाने अडकत जातो. तेव्हा कुणाचेही मन दुखवताना अगदी शंभर वेळा विचार केलेला बरे नाही का..?
A song written by me for one of the upcoming marathi movie....
Deep Thoughts https://diptalks.blogspot.com/2018/11/blog-post.html
#श्री स्वामी समर्थ #my thoughts #self created
वो चली गयी तब..! वो चली गयी तब खिड़की में सूरज डूब रहा था, और मुझसे नज़रे चुराकर बादलों के पीछे छुप रहा था | वो चली गयी तब दबे पाँव बादल छा गये थे, और आसमान धीरे से आँसू बहा रहा था | वो चली गयी तब हवाओं ने अपना रुख बदला, और टहनी से सूखे पत्ते को गोद में लिए चुपचाप निकल गया | वो चली गयी तब घर जैसे बेजान सा हो गया, और हँस-खिलखिलाता घर मेरा वीरान सा हो गया | वो चली गयी तब आँगन सुना लगने लगा, और तुलसी के पौंधे को मायुसी से गर्दन झुकाये पड़ा देखा | वो चली गयी तब अचानक मैं बड़ा हो गया, और बचपन ने आख़री सांस लेकर दम तोड़ दिया | वो चली गयी तब महसूस हुआ, बिना शर्त के अब प्यार करनेवाला कोई न रहा | वो माँ थी इसलिए आँखों में आँसुओं की बाढ़ मैं रोक न सका, और उसके अनगिनत प्यार को शायद समझ न सका | वो चली गयी तब उसकी कमी खलने लगी, और मैं तड़पता हुआ उसकी यादोंको समेटने लगा | अगर वो होती तो अपने पल्लू में मेरे आँसुओ को थाम लेती, अगर वो होती तो अपने बूढ़े हाथ मेरे सर पर फेरती | अगर वो होती तो उसकी गोद में जी भरके रो लेता | अगर वो होती तो मुझे समझा बुझाकर सुला देती | मगर बिना कुछ कहें मुझे छोड़कर वो चली गयी, अपने साथ मेरे बचपने को भी ले गयी | हमेशा मैं रूठता और वो मना लेती, मग़र आज न जाने क्यों माँ मुझसे रूठ गयी | वो माँ थी इसलिए मैं भी बच्चे की तरह रोये जा रहा हुँ | वो माँ थी इसलिए.......... By Deep
परछाई..! तुम चले गये जैसे तार बिजली के कट गये कहीं, घुप्प अंधेरा छा गया कुछ दिखाई देता नहीं | उम्मीदों की रोशनी फिर भी टीम टीमा रहीं हैं, लौटना गर चाहो तो तुम्हें रास्ता दिखा रहीं हैं | तुम गये तो साथ देने लो परछाई आ गई हैं, ग़म में हमारे शरीक़ होके दोस्ती निभा रहीं हैं | हमारे कद से लंबी होकर ना जाने क्या जता रहीं हैं, खामोशी से नाँप रही हमारी ऊँचाई है | हमसे ही दूर परछाई खिंची चली जा रहीं है, लगता हैं वो तुम्हारी परछाई को छूने आ रहीं है | पर तुम्हारी तरह तुम्हारी परछाई भी सख्त हैं, मुड़कर भी न देखा इतनी संगदिल हैं | शायद तुम्हें खो देना यहीं हमारा मुक़्क़द्दर हैं, साथ परछाई के अब सारी जिंदगी गुज़ारनी है | चाहे कितना भी हो अँधेरा वो मेरे साथ हैं, आप की तरह परछाई तो दगाबाज़ नहीं | जी लेंगे आप के बिना यूँही, अब हम झूठे वादों के मोहताज़ नहीं | गुज़ारिश ईतनी सी हैं बस तुमसे, के आईन्दा हमारी परछाई से गुज़रना नहीं | by Deep
#MKGANDHI मेरे लिये गांधी एक सोच है..! बदलाव का नया रूप हैं..! आज़ादी के अमृत मंथन से निकली ऐसी आँधी, अहिंसा का दामन थामे जो जन्मे वो थे गाँधी | सत्याग्रह की सोच लिये जो अड़े रहें वो थे गाँधी, अंतिम सांस तक देशहित की सोचते रहें वो थे गाँधी | पर आजकल हमें तो बस नोटोंपर दिखते हैं गाँधी | जितने ज्यादा गाँधी उतनी परिवार की चाँदी | हर नोट से गर बापू आ जाय तो उड़ेगी फिरसे आँधी | आतंक,भ्रष्टाचार से जूझने क्या लौटेंगे फिर गाँधी ? ये जंग हमारी अपनी हैं, बस्स दिलोंमें बसा लो गाँधी | बापू की विचारधारा से जो खुद का मंथन कर लेगा, हर भारतवासी के मन में तब जी उठेंगे गाँधी | सोच बदलनी बाकी हैं , सब देख रहे हैं गाँधी | अपनी अपनी जेबें टटोलो हँसते दिखेंगे गाँधी | By Dipti Methe
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