परछाई..!
तुम चले गये जैसे तार बिजली के कट गये कहीं,
घुप्प अंधेरा छा गया कुछ दिखाई देता नहीं |
उम्मीदों की रोशनी फिर भी टीम टीमा रहीं हैं,
लौटना गर चाहो तो तुम्हें रास्ता दिखा रहीं हैं |
तुम गये तो साथ देने लो परछाई आ गई हैं,
ग़म में हमारे शरीक़ होके दोस्ती निभा रहीं हैं |
हमारे कद से लंबी होकर ना जाने क्या जता रहीं हैं,
खामोशी से नाँप रही हमारी ऊँचाई है |
हमसे ही दूर परछाई खिंची चली जा रहीं है,
लगता हैं वो तुम्हारी परछाई को छूने आ रहीं है |
पर तुम्हारी तरह तुम्हारी परछाई भी सख्त हैं,
मुड़कर भी न देखा इतनी संगदिल हैं |
शायद तुम्हें खो देना यहीं हमारा मुक़्क़द्दर हैं,
साथ परछाई के अब सारी जिंदगी गुज़ारनी है |
चाहे कितना भी हो अँधेरा वो मेरे साथ हैं,
आप की तरह परछाई तो दगाबाज़ नहीं |
जी लेंगे आप के बिना यूँही,
अब हम झूठे वादों के मोहताज़ नहीं |
गुज़ारिश ईतनी सी हैं बस तुमसे,
के आईन्दा हमारी परछाई से गुज़रना नहीं |
by Deep