•जज़्बात
कुछ जज़्बात हैं कि आंखों से छलकने लगे हैं..,
नाम सुनकर ख़याल-ए-गुलज़ार बहकने लगे हैं..!
बे इब्ब्तिला ग़ैर रातों से रुख़सत क्या हों गई
वो आवारा हैं कि हरकिसीसे दिल लगाने लगे हैं..!
ज़ालिम ये दुनिया भी क्या क़हर ढ़ा रही हैं..,
मुकर जाते हैं वादा कर के और मुस्कुराने लगे हैं..!
कोई आये ग़र ये घर खाली खंडहर पड़ा हैं..,
मेहफ़िल-ए-आवाज़ सुनेनो को हम तरसने लगे हैं..!
बे-घर था इश्क़ मोहब्बत मैखानों का वगरना
हालात-ए-हाल को देख "काफ़िया" लोग आने-जाने लगे हैं..!
#TheUntoldकाफ़िया
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