#AJ #MATRUBHARTI
बेचने ! अपनी तड़प, अपने दर्द को सजाकर।
सरे बाजार से कुछ खुशियां खरीदने चला हूं ।।
धूप घनी थी, प्यासा हुआ तो आंसू ही पी गया,
लाचारी को अपनी, में ऐसे ही बदलने चला हूं ।।
क्या कहकर बेचता, मुझे चिल्लाना ना आया,
लोग पूछते रहे, और में खामोशी बेचने चला हूं।।
हुई शाम सुबहकी, कुछ ना अबतक बिक पाया।
दर्द मिला जहां, में वहा पर भूख मिटाने चला हूं।।
बटोर लिया सामान, कंधे पे डाले बोज चल पड़ा,
छोड़कर जूठी उम्मीदें, ताउम्र अब सोने चला हूं।।
बेचने ! अपनी तड़प, अपने दर्द को सजाकर।
सरे बाजार से कुछ खुशियां खरीदने चला हूं ।।
मिलन लाड़. वलसाड. किल्ला पारडी।