"शहरी मोगरा" शहरी मोगरा,छोटे गमले में लगा,बालकँनी में अकेला, हवा की ठंडक, महसूस कर रहा। तीन कली खिली,कभी हँसती कभी मूस्कूराती , धूल की मोटी परत पत्तो को करती भारी।, इंतजार करती,पानी की कुछ बूंद मिटा दे उसकी तृष्णा।रात की ठंडी चांदनी में आती ,भीनी-भीनी खूशबू एहसास कराती..आखिर है तो "मोगरे का फूल"