जिंदगी
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ना समझो दिल्लगी जिंदगी को जीना
आये दुनिया मे, खुशी से जिंदगी जीना ।
नही है भरोसा इस जिंदगी का
डर हमेशा इंसान के मन मे मौत का ।
है अपनी यह जिंदगी दो सुरो की
एक सूर है जीवन का तो दुसरा मौत का ।
पल पल को कैसे जिये सिखाये जिंदगी
इंसानियत जो जिये वही सही जिंदगी ।
देश के लिये हो निछावर हो जो जिंदगी
मौत भी है नाज जो जिये ऐसी जिंदगी ।।
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कविता- जिंदगी
कवी- अरुण वी. देशपांडे
पुणे ( महाराष्ट्र )
9850177342