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Arun V Deshpande

Arun V Deshpande

@arunvdeshpande
(2.1m)

Poem by : Arun V.Deshpande
Title: Money is not life
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Money is not life
My friend,
Life means happy journey
For those
who have money ...

For someothers
life means
strugglefull journey
Without money...

Money is So sweet honey,
Efforts becomes
.only aim to Earn money
by hook & crook..
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Poem by-
Arun V.Deshpande
Pune (Maharashtra)
9850177342
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जिंदगी
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ना समझो दिल्लगी जिंदगी को जीना
आये दुनिया मे, खुशी से जिंदगी जीना ।

नही है भरोसा इस जिंदगी का
डर हमेशा इंसान के मन मे मौत का ।

है अपनी यह जिंदगी दो सुरो की
एक सूर है जीवन का तो दुसरा मौत का ।

पल पल को कैसे जिये सिखाये जिंदगी
इंसानियत जो जिये वही सही जिंदगी ।

देश के लिये हो निछावर हो जो जिंदगी
मौत भी है नाज जो जिये ऐसी जिंदगी ।।
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कविता- जिंदगी
कवी- अरुण वी. देशपांडे
पुणे ( महाराष्ट्र )
9850177342

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नव उदय पत्रिका, दिसम्बर-2025
अंक मे प्रकाशित रचना
कवी-अरुणदास " अरुण वि.देशपांडे
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करें प्रार्थना हम श्रीगुरुवरसे ।।
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श्रीगुरुचरण मे जाए हम शरण
करें प्रार्थना हम श्रीगुरूवर से ।।

हो नित्य सेवा मन से हम से ।
अंध:कारसे भरा हुवा मन भितर ।
प्रकाशमय करें गुरूवर आप इसे ।
करें प्रार्थना हम श्रीगुरूवर से ।। 1।।

दिव्य अमृतवाणी कानो पर पडे ।
गुरुवाणी सुने यही इच्छा हो इसे ।
श्रीगुरुचरण मे जाए शरण हम ।
करें प्रार्थना हम श्रीगुरुवर से ।। 2।।

मलीन मन हमेशा निर्मल रहे ।
उजालेसे मनअंतर चमकते रहे ।
सेवाभाव,भक्तिभावसे भरे इसे ।
करें प्रार्थना हम श्रीगुरुवर से ।। 3 ।।

श्रीगुरुचरण मे जाए शरण हम ।
करें प्रार्थना हम श्रीगुरुवर से
कवी अरुणदास प्रकट करें
यह भावना श्रद्धाभाव मन से ।। 4 ।।
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करें प्रार्थना हम श्रीगुरुवरसे ।।
कवी अरुणदास" अरुण वि.देशपांडे
पुणे.(महाराष्ट्र)
9850177342
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नमस्कार-नवी कविता अभिप्रायसाठी-
दै.नवराष्ट्र -नागपूर- दि.२२-१२-२०२५
अंकात प्रकाशित
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कवी अरुण वि.देशपांडे
चंद्र
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वाट्यास आली काळी रात्र विरहाची
कोमेजे मुखचंद्र ,चांदणी दूर त्याची ।।

चंद्र प्रतिबिंब दिसे जळात साजरे
झोंबती एकट्यास शीतल ते वारे ।।

बिलगलेल्या जोड्या दिसे काठावरी
आठवण होता तिची कळ उठे अंतरी ।।

करिती जोडपी साजरी ही कोजागरी
त्याच्यासाठी मात्र एकांतरात्र अंधारी ।।

असतो म्हणे चंद्र प्रेमाचा साक्षीदार
का आले वाट्या क्षण विरह टोकदार ।।

बा चंद्रा, तू मित्र आहेस न त्याचा
संपवून टाक तूच वनवास त्याचा ।।
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कवी अरुण वि.देशपांडे-पुणे
९८५०१७७३४२
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कविता- माझा छंदआनंद
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माझा छंद आनंद
करावे नित्य लेखन
द्यावा आनंद सकलांना
हा माझा छंद आनंद

लिहावी कविता
आपल्या माणसावर
करावे दुःख त्याचे हलके
हसवावे त्यास थोडे
हा माझा आनंद..

असावीत भवताली
जिगरी दोस्त मंडळी
बोलावे, हसावे खूप
द्यावी -घ्यावी हातावर टाळी
हा छंद -हा आनंद...
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कविता- छंद -आनंद
-अरुण वि.देशपांडे-पुणे.
9850177342
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४- कवी अरुणदास" अरुण वि.देशपांडे
समर्था तुमच्या दरबारी
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मानाने जगणे झाले हो कठीण
हा जीव अमुचा घाबरा झाला
घेऊनी गाऱ्हाणे समर्था आजला
भक्त तुमच्या दरबारी हो आला ।।

व्यवहारी घाली टोप्या लबाडीने
ठकसेनांना आवर तुम्ही घाला
घेऊनी गाऱ्हाणे समर्था आजला
भक्त तुमच्या दरबारी हो आला ।।

सद्गुरु आधार आम्हा मिळाला
विस्वास् आमच्या मनात जागला
कृपा असुद्या निरंतर हे समर्था
भक्त तुमच्या दरबारी हो आला ।।

सद्गुरु समर्था तुम्हीच आहा
भक्तांचे रक्षक कल्याण करविते
घेउनी गाऱ्हाणे समर्था आजला
कवी अरुणदास दरबारी आला ।।
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कवी अरुण दास" अरुण वि.देशपांडे
पाटील नगर -बावधन (बु)-पुणे-
९८५०१७७३४२
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जिंदगी मे बदलाव
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जिंदगी खुबसुरत और
बडी लगने लगेगी जब ।
मै, मेरा, मुझे, मेरे लिए,
इन को जगह नही होगी।

होगा यहा सब ,अपना,
सबका, हर एक के लिए..।
दृष्टिकोन को तुम बदलो,
छोटीसी ज़िंदगी, छोटीसी दुनिया,
बडी बडी खुशियों भरी होगी....।

नजर मे बदलाव, सोच मे बदलाव
लाने से प्रतिमा निखर जाती है ।
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स्वलिखित रचना
कवी अरुण वि.देशपांडे-पुणे

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तकदीर से शिकायत नही
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कई चेहरे गुजरे नजर के सामने से,
किसी पर यह दिल आया ही नहीं।

सोचता था बड़ी सूनी है जिंदगी,
कसर कभी कम होगी कि नहीं!

एक दिन अलग आया जिंदगी में,
पल वो, जब मिले तुमसे भूला नहीं।

आँखों ही आँखों में बातें क्या हुई,
बातों से कुछ कहना पड़ा ही नहीं।

तुम ही बताना, क्या जादू हो गया!
दिल कब चुराया तुमने, पता नहीं।

दिल खुशी से भर गया है अभी,
अकेलेपन का नामो-निशान नहीं।

जब से आई हो जिंदगी में तुम,
तकदीर से कोई शिकायत नहीं ।।
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हिंदी भाषा डॉट कॉम पर प्रकाशित
-अरुण वि.देशपांडे-पुणे
9850177342
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कवी अरुणदास लिखित-
।। श्री दत्तगुरूंची आरती ।।

त्रिगुणात्मक मूर्ती पाहुनी
आनंद दाटला हो मनी
दर्शनाची झाली कामनापूर्ती
करू या दत्तगुरूंची आरती ।।

केला होता संकल्प कधीचा
दर्शनासी येईन हो दरबारी
दयाळू तुम्ही केली इच्छापूर्ती
करू या दत्तगुरूंची आरती ।।

नामस्मरणे मन आनंदले
निराशेचे जळमट दूर झाले
नित्य पडो नजरेस ही मूर्ती
करूया श्रीदत्तगुरूंची आरती ।।

भक्तवत्सल सद्गुरू तुम्ही
कवीअरुणदास विनवणी
भक्तांना व्हावी कृपेची प्राप्ती
करूया दत्तगुरूंची आरती ।।
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कवी अरुणदास" अरुण वि.देशपांडे-पुणे
९८५०१७७३४२
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#स्वलिखित रचना
कवी-अरुण वि.देशपांडे-पुणे
शीर्षक-
और थोडी देर..
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दिल की बात कह दू
और थोडी देर ठहरो जरा

तुम सामने यूं बैठे रहो
दिलसे कुछ तो कहो
दिल की बात कहूं मै
और थोड़ी देर ठहरो जरा

हाल मेरा देखलो जरा
प्यार महसुस करलो जरा
दिन बहार के अब आये है
और थोडी देर ठहरो जरा

मुझे जबसे प्यार हुवा है
दिल मे खयाल तुम्हारा है
लगे ना कही ये दिल अभी
और थोडी देर ठहरो जरा
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#स्वलिखित रचना
कवी-अरुण वि.देशपांडे-पुणे

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