ज़ुबां है ख़ामोश दिल में हसरत है।
बैठे हैं गुमसुम, आँखों में चाहत है।
क्या मेरे सिवा शहर में मासूम हैं सारे?
सब जुर्म मेरी जात से मनसूब हैं सारे।
रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ तो निभाएँ कैसे,
हर तरफ़ आग है, दामन को बचाएँ कैसे।
दिल की राहों में उठाते हैं जो दुनिया वाले,
कोई कह दे कि वो दीवार गिराएँ कैसे।
दर्द में डूबे हुए नग़मे हज़ारों हैं मगर,
साज़-ए-दिल टूट गया हो तो सुनाएँ कैसे।