इंसान को अगर "मटर पनीर" दिया जाए और उसे "मटर" की जगह "छोले" दिखने लगे तो वह वही समझेगी की उसे "छोले पनीर" दिया गया है।
आप उसे कितना भी समझा लो कि उसकी थाली में "मटर पनीर" है लेकिन अगर उसे छोले दिख रहे हैं तो छोले ही दिखेंगे।
मतलब कि इंसान को जो समझ आता है उसी हिसाब से वह दुनिया देखता है और समझता है।
फिर चाहे उसकी समझ वास्तविकता से परे ही क्यों न हो।।