🌙 ग़ज़ल — “तेरे ज़िक्र की महक”
तेरे ज़िक्र की महक अब तक बाक़ी है,
मेरे लफ़्ज़ों में तेरी बात बाकी है।
तेरे जाने के बाद भी यूँ लगता है,
हर साँस में तेरी सौग़ात बाकी है।
वो नज़रों की शरारत, वो हँसी की चमक,
दिल के आईने में तेरी छाप बाकी है।
न जाने किस दुआ में तू शामिल है अब भी,
हर तन्हा रात में तेरी याद बाकी है।
ख़ामोशी कह रही है आज भी कुछ यूँ,
“मोहब्बत अधूरी सही, पर पाक बाकी है।”
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