मैं और मेरे अह्सास
उम्र बढ़ रही हैं
उम्र बढ़ रही है चलो गिले शिकवे दिल से छोड़ देते हैं l
भाईचारा के साथ सुकून की ओर रास्ते मोड़ देते हैं ll
मन के हारे हार और मन के जीते जीत यहीं सत्य l
अब हो ना पाएगा कुछ भी ख्यालों को झँझोड़ देते हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह