मैं और मेरे अह्सास
मिजाज
मिजाज मौसम का बेईमान हो गया हैं l
अपनी ही मस्ती में सुधबुध खो गया हैं ll
बेलगाम रफ़्तार में आकर चौतरफ़ा से l
सन्नाटा फैलाके क़ायनात धो गया हैं ll
कई बार उफान का रूप ले लेता है कि l
उसके झपट में जो आया वो गया हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह