मैं और मेरे अह्सास
राज-ए-दिल
राज-ए-दिल को ज़माने से छुपाए जाते हैं l
हाले दिल हर किसीको नहीं बताए जाते हैं ll
गैरो को तो मजा आ जायेगा सुनकर दास्ताँ l
अपनों के दिये ज़ख्म नहीं सुनाए जाते हैं ll
दर्दों ग़म के कारवाँ के साथ चलते चलते l
सालों से दिल में जुदाई बोझ उठाए जाते हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह