अज़ाब देकर तू क्या अजब बात कर गया,
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था भूल गया..
किसी आँख में नहीं अश्क़-ए-ग़म, तू जानता था तेरे बअ'द कुछ नहीं थे हम ,
गुनेहगार फ़िर भी तू क़रीब इतने आ के सब भूल गया..
पानी चुभा जो लबों पर समंदर से फ़रियाद कैसी,
इश्क़ तीखा चराग़ हवाओं से फ़रियाद कर गया..
इश्क़ की फ़िर वही ज़ंज़ीरे लिए चला है मेरी तरफ,
तुझें ज़िन्दगी में कब का मुस्कुरा के भूल गया..
था जो कभी बे-इंतेहा फ़िदा तुम पर,
वो था एक दरिया विसाल जो कब का उतर गया..
हां मैं तुझ को मुस्कुरा के भूल गया..