क्या वो दिन याद है तुम्हें, जब मरने का सोचा था,
सब कुछ सूना लग रहा था, कोई भी अपना ना था।
मर जाना इस दुनिया में कितना आसान लगा,
पर दिल ने फिर माता-पिता का चेहरा दिखा।
आँखों में भरे आँसुओं से तुमने सोचा होगा,
मैं उन्हें दुखी कैसे देख सकता, ये कहा होगा।
जिन्होंने जीवन दिया, जिनसे साँसें मिलीं,
कैसे छोड़ दूँ उन्हें, कैसे करूँ ये गलती कहीं।
वो ज़हर की शीशी फेंक दी तुमने उस घड़ी,
आँखों का पानी पोंछा, और मुस्कुरा दिए वहीँ।
जैसे कोई दर्द था ही नहीं, भीड़ में घुल गए,
दिल के बोझ को चुपचाप, सीने में रख लिए।
पर अब सोचता हूँ, अगर सच में चला जाता,
तो कितनी बड़ी भूल थी, सब पीछे छोड़ जाता।
इस सुंदर जीवन का आनंद लेना छूट जाता,
खुशियों से भरा सफ़र, मैं जी ही न पाता।
🙏🏻
- Umakant