"अभी बाकी है''
ऐ समय थोड़ा धीरे चल
माना कुछ कर्तव्य पूरे हुए,
जीवन काटते काटते,
पर पाना अधिकार बाकी है।
ऐ वक्त थोड़ा धीरे चल
गैरों को अपना बनाने की चाह में,
अपनों को नाराज करने की राह में,
अपनों से पाना प्यार बाकी है।
करती रही अनगिनत शिकायतें,
रही नजर अधूरी हसरतें,
ऐ आलम थोड़ा धीरे चल
उन सबका दिल से करार बाकी है।
छोटी उम्र में ही समझदार बनी,
बड़ी उम्र में भी बचपना करती रही,
ऐ उम्र थोड़ा धीरे चल
अभी बनना होशियार बाकी है।
पढ़ा किताबें, अखबार, पत्रिकाएँ,
पर फिर भी कुछ तो जानना बाकी रह गया।
ज़िंदगी साथ रही,
सच मानना बाकी रह गया।
अब सोचती हूँ कितना चलूं,
कहाँ चलूं और कैसे चलूं,
ऐ रास्ते थोड़ा धीरे चल
सपनों का पूरा होना बाकी है।
जीत की चाह में खुद को हार गयी,
जरूरी के जूनून में चाह को वार गयी।
दिमाग की सुनते-सुनते,
दिल की बात को दबा दिया।
आंसू को छुपाते-छुपाते,
हंसी भी नकली बना दिया।
ऐ दिल थोड़ा धीरे चल
खुद से प्यार अभी बाकी है।
सोचती हूँ हर वक्त एक ही सवाल,
ज़िंदगी कैसी होनी चाहिए, क्या है हाल?
क्या होना चाहिए,
इसके या उसके जैसी होनी चाहिए?
जैसी है वह, दिल को क्यों मंजूर नहीं।
अहम चाहता है इतना,
तु इतना तो मजबूर नहीं।
ऐ चाहतें थोड़ा धीरे चल
ज़िंदगी से लाड़ अभी बाकी है।
खुशियों का स्वागत करते हो दोस्त,
पर ग़मों का क्या, यही है रीत?
मोहब्बत तो हम भी चाहते हैं,
पर नफ़रत की कहानी में,
हमें भी यही सिखाती है प्रीत।
ऐ भावनाएं थोड़ा धीरे चल
ग़म पर भरोसा अभी बाकी है।
चलती रही मैं यादों के साथ,
न देखा दिन, न देखा रात।
हर अच्छी बात को भूल,
आँखों में बुरी घटनाओं की बिसात।
चल कुछ खेल खेलते हैं,
तु जीते और मैं हार जाऊँ,
तू रहे इस पार और मैं उस पार जाऊँ।
ऐ यादें थोड़ा धीरे चल
हकीकतों का दीदार अभी बाकी है।
ऐ वक्त, समय, आलम, उम्र
नहीं रूकना तो मत रूक यहाँ।
पर कुछ तो बता दे,
फिर चले जाना, जाना है तुझे जहाँ।
तु बन जा दोस्त, मेहमान या रिश्तेदार,
पर मुझको पराया न करना।
तु बन जा ग़म, शिकायत या तकलीफें,
पर खुद को जाया न करना।
ऐ जिंदगी थोड़ा धीरे चल
जीवन की कुछ धार अभी बाकी है।