कष्ट यहीं रह जायेंगे
सुख-दुख बैठे रह जायेंगे।
यह भाषा, वह भाषा बोलते-बोलते
चुप हो जायेंगे,
यह राह, वह राह चलते-चलते
गुम हो जायेंगे।
इस कहानी,उस कहानी को कहते-कहते
विराम ले लेगें,
इस ममता, उस ममता में ठहर
सब कुछ छोड़ जायेंगे।
इस किताब, उस किताब को पढ़
मौन जायेंगे,
कभी इसकी, कभी उसकी आलोचना करते-करते
आलोचना के पात्र बन जायेंगे।
इस विभाजन, उस विभाजन में रह
खाली हाथ चल देंगे,
शिकायतों पर विराम लग
क्षणभर में सब शान्त हो जायेंगे,
कष्ट यहीं रह जायेंगे।
*** महेश रौतेला