मुक्तक
*****
122-122-122-122
*********
पिता
*****
हमें साथ लेकर चलें वो पिताजी।
कठिन राह चलते हमारे पिताजी।
समंदर सदृश भाव रखते सदा ही
बड़े आज हैं बेसहारा पिताजी।।
रखे शीश पर हाथ मेरे पिताजी।
सजे शीश पर हाथ प्यारे पिताजी।
नहीं साथ जिनको मिला है पिता का
रुलाते बहुत हैं दिनों दिन पिताजी।।
**********
मित्र
**********
कभी मित्रता में न संदेह लाओ।
नहीं सत्य का आप दीपक बुझाओ।
शिकायत करो जो गिला फाँस चुभती।
उठो मित्र को फिर गले से लगाओ।।
चलो यार भूलो नहीं गाँठ कसना।
नहीं भावना स्वार्थ के साथ रसना।
कहीं ये सलीका रुलाए न कल में।
खुले मन हमारे गले मित्र लगना।।
बड़े कीमती आप मेरे सही हो।
सही बात ये तुम समझते नहीं हो।
बताओ भला रूठकर क्या मिलेगा।
पड़े हो भरम में अभी भी वहीं हो।।
सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)