हास्य
मृत्यु मित्रता चाहती है
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दरवाजे पर हुई दस्तक सुन
मैंने दरवाजा खोला, तो सामने मौत खड़ी थी,
मैंने प्यार से उसका स्वागत किया,
अंदर लाकर बैठाया, जलपान कराया।
फिर आने का कारण पूछा-
उसने बड़ी मासूमियत से कहा
आपसे मिलने की बड़ी इच्छा थी,
आज खुद को रोक नहीं पाई और आ गई।
आप यमराज के मित्र हैं, सुनती भर थी
आज पता चला कि यमराज से आपकी
यूँ ही बेवजह नहीं जमती।
आप दोनों की यारी को नजर न लगे,
आप दोनों अनंत काल तक बने रहें सगे,
मैं यहाँ आई थी, यह राज ही रखिएगा,
यमराज से तो बिल्कुल मत कहिएगा।
बेवजह बेचारा परेशान हो जाएगा
मुझ पर संदेह कर उद्वेलित हो जाएगा
गुस्से में क्या कर बैठे, खुद भी नहीं जान पाएगा।
यमराज आपका बहुत सम्मान करता है,
मुझे भी बहुत मान- सम्मान देता है,
ऐसे में मेरा भी तो कुछ फ़र्ज़ बनता है,
यह और बात है कि हम दोनों
आमने-सामने या कभी एक साथ नहीं हो सकते
पर एक दूसरे के साथ विश्वासघात की बात
कभी सपने में भी नहीं सोच सकते,
हम दोनों अपनी सीमाओं का उलंघन भी नहीं करते।
पर हाथ जोड़कर एक निवेदन आपसे भी है
माना कि हमारा आपसे कोई रिश्ता न सही
पर यदा-कदा आपसे मिलने की इजाजत चाहती हूँ,
और आप चाहेंगे तो मित्रता के रिश्ते
यमराज की ही तरह मैं भी रखना चाहती हूँ,
आप और हम मित्र हैं,
बस यही बात दुनिया को बताना चाहती हूँ,
आराम से सोचकर निर्णय कीजिए
अभी तो मैं ही आपसे विदा लेना चाहती हूँ।
सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)