हास्य -अनूठी यारी
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आज सुबह जब आँख खुली
तो कुछ अजीब सा लगा,
रसोईघर में कुछ खुसुर-पुसुर सुनाई पड़ा,
मैं धीरे से उठा और चुपके से वहाँ जाकर जो देखा
उसे देखकर तो मैं दंग रह गया,
पूरी ईमानदारी से वापस बिस्तर पर आकर बैठ गया
और सोचने लगा कि जो मैंने देखा
वो मेरा भ्रम है या कोई सपना।
सोचा श्रीमती जी को आवाज दूँ,
फिर सोचा- क्यों जानबूझकर ओखली में सिर रख दूँ।
तब तक दरवाजे पर दस्तक हुई,
मैंने भागकर दरवाजा खोला
तो सामने यमराज नजर आया,
उसे देखकर मैं चकराया, मगर धैर्य नहीं खोया
प्यार से कहा-आ जा प्यारे, बस तेरी ही कमी थी।
यमराज हाथ जोड़कर कहने लगा-
क्या बात है प्रभु! आप कुछ परेशान लग रहे हैं,
मैंने कहा- नहीं, आज तो मैं सबसे ज्यादा खुश हूँ
बस तू चुपचाप अंदर आ जा
आज के सुदर दृश्य का दर्शन करके
आज तू भी धन्य हो जा,
मेरी जान आफत में फँसे,
उससे पहले वापस निकल जा।
वरना आज तो महाभारत पक्का है,
तेरे साथ मुझे भी धक्के खाकर
घर से बाहर जाना दो सौ प्रतिशत लिखा है।
यमराज अंदर आ गया,
मैंने उसे चुपचाप रहने के साथ
अपने पीछे-पीछे आने का इशारा किया,
और सीधा रसोईघर की खिड़की पर पहुँचकर
उसे खिड़की के सामने खड़ा कर दिया।
अंदर श्रीमती जी का मृत्यु से
हँसते मुस्कुराते हुए वार्तालाप चल रहा था
याराना ऐसा कि जैसे कितना पुराना रिश्ता था।
यमराज झपटकर मेरा हाथ पकड़कर बाहर आ गया
और कहने लगा प्रभु! मैं ये क्या देख रहा हूँ
इस घर से अपना बोरिया बिस्तर लिपटते देख रहा हूँ।
उसकी बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया
मैंने लगभग चीखते हुए कहा -तुझे अपनी पड़ी है
यहाँ तो मुझे अपना भविष्य अंधेरे में दिख रहा है
जाने क्या मेरे बुढ़ापे में लिखा है।
यमराज संयत भाव से ज्ञान देने लगा
प्रभु! नकारात्मक विचार दूर फेंकिये,
सकारात्मक विचारों के साथ खुश हो जाइए,
आप मेरे यार हैं, यह दुनिया जानती है
तो भौजाई को भी मृत्यु से यारी निभाने दीजिए,
इसी बहाने उनको भी एक शुभचिंतक मिल जायेगा
मृत्यु जब भी कभी उदास या किसी उलझन में होगी
तो उसे भी भौजाई से मिलकर
मन की वेदना कहने की खुली छूट तो होगी,
भौजाई को भी मौके -बेमौके
अपनी भंड़ास निकालने में सुविधा होगी।
माना कि मृत्यु से मेरा छत्तीस का आंकडा है
तो क्या हुआ? कौन सा अपराध हो गया।
हम दोनों दूर-दूर ही सही
पर हमारे तालमेल में तो कोई कमी नहीं,
हमें एक दूसरे की सबसे अधिक जरुरत है,
हम दोनों एक दूसरे के सच्चे शुभचिंतक हैं।
इस तरह दुनिया भी अचंभित हो जायेगी
आप हमसे और मृत्यु भौजाई से जब यारी निभाएगी,
फिर भला किसकी औकात है
जो मुझ पर या मृत्यु पर ऊँगलियाँ उठाएगी,
वो तो इस अनूठी यारी के किस्से सुनाकर
सिर्फ अपनी डफली ही बजायेगी, गायेगी और
मुस्कराकर रह जायेगी,
उसे हमसे शिकवा, शिकायत ही क्या रह जायेगी?
सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)