वह मस्तक को चूम रहे ।
कहे स्वप्न में वो ,
मेरी यह सांस तुम्हारी ।
मैं वेदना की भेट चढ़ी ,
स्वप्नों में भी, स्वप्न बने तुम ,
जीवन भर रही आश तुम्हारी ।
नहीं प्रतीक्षा अब करना चाहती ।
पीड़ा से न वरना चाहती ।
सखियां भी अब मुझे चिढ़ाए,
क्या तुम्हारे प्रिय अब तक न आए ?
बोलो अब क्या और कहूं
क्या कह दूं प्रिय ?
अब तुम न कभी आओगे ।
अश्रु जीवन के नाम लिखी ,
और जोग मेरे जीवन का उपहार बना ।
- चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी