मसला ये है कि उसे मनाऊं कैसे
मुसीबत तो ये है कि मैं जाऊं कैसे
अब के तकरार उनसे घनी हो गई
लाया था जो गजरा, सजाऊं कैसे
सोना, बाबू, जानू सब तो पुराने हैं
सोच रहा हूँ कि उसे बुलाऊं कैसे
नाम लूं उसका तो शायद मार डाले
महबूब को कातिल मैं बनाऊं कैसे
हद दर्जे के नाराज हैं हमारे सनम
तरीके खोज रहा हूं की मनाऊं कैसे
वो सफेद गुलाब गुस्से में लाल है
प्यार तो आता है पर जताऊं कैसे
पर्दे भी सारे अब उसने गिरा दिये
बत्ती भी बुझा दी है, घर जाऊं कैसे
लगता है ये रात, अब यूं ही बीतेगी
मैं तारे उसकी मांग में सजाऊं कैसे