बस अब बहुत हुआ।
क्या हुआ क्यूं हुआ कहा हुआ।
कब हुआ !
बस अब बहुत हुआ।
अरे
आदमी अब आदमी के जान का प्यासा।
ऐसा वीभत्स दृश्य देख होती निराशा।
वन उपवन उजाड़ डाले सब।
पशु पक्षी को मार खा ले सब।
तुम्हारे इन भावुक हृदय से अब नहीं है कोई आशा।
तुम अकेले तो नहीं हो और भी सृष्टि रची है।
जरा सोचो तो की क्या कुछ मान मर्यादा बची है ?
कुछ सुकून की सांस ले लूं पर किधर !
आंख की पुतली सरकती है जिधर
सिर्फ और सिर्फ असंख्य अट्टालिकाएं है उधर।
लाख लिख दो फ़ाइलों में लाख वादे भी बनाओ।
बाद में दफ्तर के दफ्ती में दबा देना इन्हें।
और कह देना प्रजा से काम सब चौकस , सही है।
लेप देना हर जगह को मंदिरों और मस्जिदों में।
लोग भड़केंगे कड़केंगे लड़ेंगे मरेंगे जलाएंगे स्वयं की साख को।
देश भड़केगा कटेगा फिर बंटेगा आधी रात को।
ये जिन्हें तुम नेता कहते फिर रहे हो।
ये तो अपनी महफिलों में मस्त होंगे।
तुम तलाशोगे जलाशय तुम्हीं
खोदोगे कुआं।
आनंद त्रिपाठी।