मुझे अपने गाँव से प्यार है
उसकी पगडंडियां टूटी हैं,
आधे खेत बंजर हो चुके हैं
गूल जहाँ-तहाँ भटक चुकी है,
नदी का बहाव अटका सा है
बादल इस साल फिर फटा है,
विद्यालय सूना-सूना है
पढ़ाई अस्त-व्यस्त है,
फिर भी प्यार अपनी जगह है।
शराब की दुकान खुल चुकी है
बिजली जगमगा रही है,
लड़ाई-झगड़े होते हैं
झूठी गपसप चलती है,
पर शान्ति का संदेश लिखे मिलते हैं
सत्य का आकांक्षा बनी हुई है,
क्योंकि "सत्यमेव जयते" वृक्ष पर
लिखा है।
पर वहाँ जा नहीं पाता
लम्बी चढ़ाई चढ़ नहीं पाता,
उम्र से लड़ नहीं पाता
ऊँचाई को बस देखभर लेता हूँ,
फिर भी प्यार अपनी जगह है।
मुझे अपने गाँव से बहुत प्यार है
वह पहले जैसा नहीं दिखता
जो भी चित्र आता है ,अलग लगता है
मेरे गाँव को कुछ तो वरदान है,
कि मैं उसे बूढ़ा नहीं कह पाता हूँ।
चूल्हे की आग जो तापी
उसकी आँच अब भी नरम है,
रात को देखी चाँदनी रात
अब भी याद है।
बात सच है कि प्यार गाँव से
है,
अस्सी साल की बुआ की झुर्रियों से जो प्यार झलकता था,
उससे गाँव को जाना था।
अब बातें बड़ी हो गयी हैं
पहले झंडे लेकर दौड़ते थे,
अब प्रजातंत्र में चुनाव लड़ते हैं,
साफ-साफ दिखता है
मुझे अपने गाँव से प्यार है।
प्यार भूला भी जा सकता है
वर्षों बाद देखा था
जब चारों ओर सन्नाटा था,
गाँव में इका दुक्का कोई रहता था,
फिर भी मेरा प्यार जिन्दा था।
***
२०१८
***महेश रौतेला