ग़ज़ल-
तेरी आँखों में जो देखा तो सवेरा निकला,
चाँदनी रात का हर ख्वाब सुनहरा निकला।
तेरी साँसों की महक संग बहकते रहे,
जैसे बरसों से भटकता कोई रस्ता निकला।
दिल की वीरान गली में जो कदम रख दिए,
इक दबी आग का शोला भी सुनहरा निकला।
तेरी बातों में वो जादू, वो मोहब्बत की कशिश,
हर लफ़्ज़ जैसे कोई मीठा सा नग़मा निकला।
इश्क़ को सोच के रोका था कई बार मगर,
फिर भी तेरा नाम लब से बेख़ुदी में निकला।
अब तो बस एक ही अरमान लिए हैं राजेश,
तेरी बाहों में सिमट जाए जहाँ सा निकला।