तुम मेरी पीड़ा को जान सको तो जानो ईश्वर,
यह पथ टूटा,वह पथ टूटा
निर्माण यहाँ होना भगवन।
यह घर छूटा वह घर छूटा
दूर आकर लौटा हूँ ईश्वर,
मैंने देखा गगन तुम्हारा
किस सीमा पर रहना भगवन!
खिले वृक्ष पर पुष्प बहुत
सुगन्ध कहाँ तक आती भगवन!
इस दुनिया में बहुत कष्ट हैं
कौन कहाँ तक सहता भगवन!
मन में कौन कब तक बैठा
इसका ब्यौरा लिख दूँ भगवन,
यहाँ श्मशान, वहाँ श्मशान
नव जीवन आना है भगवन।
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** महेश रौतेला