~~ अनंत मौन ~~
हूँ अनंत मौन अरसे से!
जग पूछे, रहता क्यूं इतना शांत भला?
पाया दुनिया को ओढ़े जो रंग!
जाना बस, इससे अच्छा अपना एकांत भला।
धुंधला सा हर रिश्ता यहाँ,
लालच में रंगी हर चाहत यहाँ।
सच्चाई की तलाश में निकला जब,
अपना मौन ही लगा सबसे साक्षात यहाँ।
सजे मुखौटे हज़ारों यहाँ,
फिर भी सच का साया कोई कहाँ?
सिर्फ दिखावे में उलझी है भीड़,
कहने को तो बहुत कुछ है,
पर अब ना सुनने वाला इंसान बचा।
पाया दुनिया को ओढ़े रंग-रूप,
जो केवल छलावे का खेल है।
सच्चाई से परे है यह सब,
बस दिखावे का यह मेल है।
शोर में छुपी , अनगिनत बातें,
और खामोशी में मिलती सौगातें।
जो नहीं कहा, वही सबसे गहरा,
इस मौन में बसीं दिल की बातें।
अब यह मौन ही मेरा साथी है,
शांत लहरों में छुपा एक राग यहां।
इससे बेहतर कुछ न पाया मैंने,
यही मेरा सुकून, और अब यही मेरा भाग्य रहा।
~~ अनंत मौन ~~