क्या घोलकर तुमने पीया,मैं हूं प्रिये बैराग में।।
देखा तुझे तो खो गई हूं,मैं तेरे अनुराग में।
अब चाहती हूं बिताना मैं यह फाग तेरे साथ में........
क्या घोलकर_________ वैराग में
हूँ पुकारती तुमको ही मैं,दिन रात अपने ख्वाब में
हूँ चाहती तुमसे प्रिय,अधिकार इस अनुराग में।।
क्या घोलकर----------- वैराग में
चाहना तुम्हें मेरे बस में है,पाना तुम्हें बस में नहीं
जो जिद पे मैं आ जाऊं तो,यह जान लो बेबस नहीं.......
लेकिन लिखे तुम हो नहीं,प्रियतम मेरे इस भाग में......
क्या घोलकर------------- वैराग में।।
तेरे दरस की दीद में,ये नयन पल- पल है जगे..
जो दिख भी जाए तू मुझे,तो मन यह मेरा कब भरे।
दे दो सजन एक बार,अपना हाथ मेरे हाथ में।।
क्या घोलकर---------------
चाहा तुम्हें तो भूली सब, और मैं दीवानी हो गई।
तुम श्याम मेरे बन गए,मैं तेरी मीरा हो गई........
अब ना उबरना चाहूं मैं तो, पिया के इस राग से ...............
क्या घोलकर-----------------
आओ सजन तुम ले चलो, मुझको तुम्हारे देश में........
इस फाग तुम रंग को सजन, मुझको भी अपने वेश में.....
देखो सजन तुम भी कभी, मुझको ज़रा अनुराग से.......
क्या घोलकर--------------
देखा तुझे तो खो गई हूं, मैं तेरे अनुराग में।