तुम्हे कैसे बताए अब की
सारे रंग
मेरी दुनिया से उड़े ऐसे
जैसे पतझड़ आते ही उड़ जाते सारे
पत्ते, पतंग।
श्याम तुम्हें क्या खबर पड़ी
मेरे कोमल चित अंगों की।
मेरे सूखे सूखे कपोल,
कुम्हलाये जैसे रोगी।
बरसाना कुछ दूर नहीं।
जो तुम चाहो,तो आ जाओ।
मुझको भी सखी बना जाओ।
इस फागुन के हैं रंग अनेक।
लाल गुलाबी पीले सफ़ेद।
पर इन रंगों की क्या ही मियाद !
कब कौन कहां मुझे छोड़ चले ?
दाग लगे कि लगे न लगे !
ऐसा रंग लगादो अबकी।
छूटे न जनम जन्म तक।
गलबहियां में डाल लो अपने।
श्यामल कर मेरा अंग अंग सब।
शस्य श्यामला मैं हो जाऊं,
भूल जाऊं मैं रंग भंग सब।
आनंद त्रिपाठी