खुद को आज़ाद करके देख तो सही इस फिजूल से बोझ ना लेने में कितना सुकून है।
हर दफा क्यों अपने वजन को लेके सुनना और सुनाना.....
हर दफा वही घिसी पीटी बाते करना की , बेटा जी आप ने शादी नहीं की.....
ओह ऐसा हुआ क्या बेटा जी आपके Divorced हो गए,
फिर तो बहुत गलत हुआ आपके साथ।
खुद को यही सोच से आज़ाद करना है मेरी जान तुझे....
क्यों मिलके सबसे पहले पूछा जाता है,
पतली हो गई या मोटी हो गई।
पूछना है तो यह पूछो ना आगे क्या प्लान है,
जीवन को तुम किस तरह से देखते हो।
यही सोच से खुद को आज़ाद करो मेरी जान।
जिंदगी में नहीं सोच का आगाज़ करो,
एक बुलंद सोच जहां एक औरत एक औरत की दुश्मन ना बने किंतु उसकी सीढ़ी बने आगे बढ़ने को,
जहां एक औरत एक औरत को ताने ना सुनाए और हर मुश्किल बख्त में खड़ी रहे उसके साथ।
यह नहीं सोच का आगाज़ करो मेरी जान।
यदि औरत ही औरत की तकलीफ ना समझे तो कोई ओर कैसे समाज पाएगा एक औरत को।
खुद को आंतरिक रूप से सक्षम बनाने का प्रयास करो,
इतनी सी नहीं सोच का आगाज़ तुम्हारा जीवन सही मायने में बदल कर रख देगा यकीन मारो मेरी बात का।