Hindi Quote in Motivational by DINESH KUMAR KEER

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हमें किसी की बुराई करना क्यों अच्छा लगता है? क्यों हम अपने आप को ऐसी बातचीत का हिस्सा पाते हैं जहां किसी एक इंसान की बड़े उत्साह के साथ बुराई की जा रही हो? अक्सर हमारा रोमांच बहुत ज़ाहिर होता है जब हम दूसरे लोगों के साथ मिलकर किसी तीसरे को भला बुरा बोल पाते हैं। जितना हमें ऐसी गपशप में रस आता है उतना ही यह हमें दर्शाता है कि हमारी अपनी जिंदगी कितनी सूनी है। हमारे जीवन का खालीपन हम इन्हीं सस्ते रोमांच से भरते हैं। एक खरी जिंदगी जो जीवन की चुनौतियों से लड़ रही होती है, उसके पास रोमांच की कोई कमी नहीं होती। वहीं एक औसत जिंदगी जहां इंसान ने भले ही अपने आप को तरह-तरह के शारीरिक सुख दे रखे हों लेकिन एक मानसिक उत्तेजना की कमी उसको अक्सर खलती है। इसी उत्तेजना को पूरा करने के लिए वह अलग-अलग तरीके निकालता है। उन्ही में से एक तरीका होता है अपने मन की भड़ास निकालना। और यह भड़ास हमारे मन में भरती ही कैसे है? जो जीवन दबा हुआ होता है, घुटा हुआ होता है, जिसको एक आजाद अभिव्यक्ति नहीं मिल रही होती है वही अपने अंदर सौ मनमुटाव लेकर चलता है। जितना दबा हुआ, जितना सीमित, जितना कुंठित हमारा जीवन, उतना ही हमें दूसरे लोगों से मलाल रहता है। क्या दूसरों की बुराई वाकई में हमारी अपनी जिंदगी से चिड़चिड़ापन और शिकायत का एक जरिया नहीं है? जब हमारे व्यक्तित्व को कोई सृजनात्मक अभिव्यक्ति नहीं मिलती है तो मजबूरी वश वह अपने आप को छोटी चर्चाओं और बैठकों में ही अभिव्यक्त करता है। और इन बैठकों का मुद्दा अक्सर रसीला ही तब बनता है जब हम किसी तीसरे का मज़ाक बना सकें। हमारी बेरंग, हतोत्साहित और ऊबी हुई जिंदगी को रंग देने का हमारे पास इसके अलावा कोई और तरीका नहीं होता। हम अपनी चाहत से ऐसी बातचीत का हिस्सा नहीं बनते हम असल में विवश ही हैं ऐसा बर्ताव करने के लिए।

Hindi Motivational by DINESH KUMAR KEER : 111970771
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