उसकी आँखो की चमक के आगे फीका हे ये सारा जहां भी,
की उसके बाद तो मैं होता हूँ जहाँ ,होता नही हूँ वहां भी,
वौ हे चमक अब हर एक महफिलों की और,
मुझे नीन्द नहिं आती ज़रा भी,
वौ हे खुश ठुकरा कर हमें,
एक दिन चुभेगा उसकौ यूँ हमें ठुकराना भी,
कुछ दिन और देख लो हमें जी भर के तुम यारों,
की फिर हौ जायेंगे बन्द हम तूम्हें नज़र आना भी,
मिले हैं गम तो कोसते हैं खुदा को हम यारों मगर,
हे इसमें थोड़ा बहुत कसूर तो हमारा भी,
ठुकराया तो था तुमने बड़े गरूर से हमें लेकिन,
सुना हे की हे नही हाल अच्छा तुम्हारा भी,
अब तो निकल पड़ जमाने से कहीं दूर तू "गेहलोत",
की अब तो रहा नही पसंद दोस्तो को तेरा ये दोस्ताना भी।