उदासी की इस गहराई में, मैं कहीं खो जाना चाहती हूं,
बाहर चल रहा है सोर जिससे दूर जाना चाहती हूं,
मुझे नहीं चाहिए किसी का मशवरा
मैं अपने ढंग से अपनी जिंदगी जीना चाहती हूं,
खूब कर ली सबने अपनी मनमानी
अब मैं अपनी मनमर्जियां करना चाहती हूं
हां हूं मैं सबसे अलग सबसे जुदा
पर दिल की सच्ची हूं इसी बात पर अड़ग रहना चाहती हूं
पता नहीं है मुझे जिंदगी का कैसा है यह मंजर
फिर भी मैं अपनी मंजिल तक पहुंचना चाहती हूं
शायद ही जाना होगा यहां किसी ने अपना कल
लेकिन मैं तो बस मेरे आज मैं ही जीना चाहती हूं
उदासी की इस गहराई में ,मैं कहीं खो जाना चाहती हूं....
- Bindu