Hindi Quote in Poem by Sudhir Srivastava

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दोहा -कहें सुधीर कविराय

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दो रघुवर निर्वाण
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सहन नहीं अब‌ वेदना, नहीं छूटते प्राण।
विनती सुनते क्यों नहीं, दो रघुवर निर्वाण।।

इतना तीखा आपने, दिया छोड़ जब बाण।
और विनय अब कर रहे, दो रघुवर निर्वाण।।

उसकी वाणी वेदना, संकट में हैं प्राण।
विनय करुँ मैं आपसे, दो रघुवर निर्वाण।।

चाह रहे सब आपसे, दो रघुवर निर्वाण।
भले पड़ोसी का रहे, संकट में ही प्राण।।

जिद मेरी भी आपसे, मारो चाहे बाण।
बाण मारकर ही सही, दो रघुवर निर्वाण।।
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मातु- पिता
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मातु पिता के चरण में, शीश झुकाकर माथ।
गमन किया श्री राम ने , लखन सिया के साथ।।

मातु पिता का हो रहा, अब तो नित अपमान।
इसमें बच्चे आज के, समझें अपनी‌ शान।।

सूनी आँखों में दिखे, मातु पिता का दर्द।
उनका जीवन तो बना, जैसे दूषित गर्द।।

मातु पिता अब रो रहे, रख माथे पर हाथ।
समय आज ऐसा हुआ, बस ईश्वर का साथ।।

चरणों में झुकते हुए, शर्म करें महसूस।
झुकते हैं जब आज वे, लगता देते घूस।।

चरणों में संसार है, मातु-पिता के जान।
जिसको आती शर्म है, वो बिल्कुल अज्ञान।।

मातु-पिता को देखिए, अब कितने असहाय।
जीना दुश्कर हो रहा, नया लगे अध्याय।।

बात सभी भूलो नहीं, गाँठ बाँध लो आप।
विवश नहीं अब कीजिए, मातु-पिता दें शाप।।
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विविध
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गणपति अब कुछ कीजिए, कहाँ मगन हैं आप।
कृपा आप कुछ कीजिए, या फिर दीजै शाप।।

हाथ जोड़ हनुमान जी, कहते प्रभु श्री राम।
ठंडी इतनी है बढ़ी, कर लूं क्या विश्राम।।

इन साँसों पर आपको, इतना क्यों है नाज़।
जाने कब ये दे दगा, और छीन ले ताज।।

जान रहे हम आपको, ओढ़ रखा है खोल।
कब तक ऐसे चक्र में, लिपट रहोगे बोल।।

मर्यादा का वो करें, चीर हरण पुरजोर।
और वही दिन रात ही, करते ज्यादा शोर।।

सुधीर श्रीवास्तव

Hindi Poem by Sudhir Srivastava : 111966816
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